प्रश्न 1. उद्देश्य प्रस्ताव में किन आदर्शों पर जोर दिया गया था?
उत्तर: उद्देश्य प्रस्ताव के मुख्य आदर्श –
i. प्रभुता सम्पन्न स्वतन्त्र भारत की स्थापना और उसके सभी भू-भागों और सरकार के अंगों की सभी प्रकार की शक्ति और अधिकारों का स्रोत जनता का रहना।
ii. भारत के सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, पद अवसर और कानून के समक्ष समानता, कानून और सार्वजनिक नैतिकता के अंतर्गत विचार अभिव्यक्ति के अधिकार, विश्वास, निष्ठा, पूजा, व्यवसाय, संगठन और कार्य की स्वतंत्रता की गारंटी देना।
iii. अल्पसंख्यकों, पिछड़े और जनजाति वाले क्षेत्रों, दलित और अन्य वर्गों के लिए सुरक्षा के समुचित उपाय करना।
प्रश्न 2. विभिन्न समूह ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को किस तरह परिभाषित कर रहे थे?
उत्तर:
i. कुछ लोग आदिवासियों को मैदानी लोगों से अलग देख कर उन्हें विशेष आरक्षण देना चाहते थे।
ii. अन्य प्रकार के लोग दमित वर्ग के लोगों को हिंदुओं से अलग करके देख रहे थे और वह उनके लिए अधिक स्थानों का आरक्षण चाहते थे।
iii. कुछ विद्वान मुसलमानों को ही अल्पसंख्यक कह रहे थे। उनके अनुसार उनका धर्म रीति-विाज आदि हिन्दुओं से बिल्कुल अलग है।
iv. सिक्ख लीग के कुछ सदस्य सिक्ख धर्म के अनुयायियों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने और अल्पसंख्यकों को सुविधायें देने की मांग कर रहे थे।
v. मद्रास के बी. पोकर बहादुर ने 27 अगस्त, 1947 के दिन संविधान सभा में अल्पसंख्यकों को पृथक् निर्वाचिका देने की मांग की और कहा कि मुसलमानों की जरूरतों को गैर-मुसलमान अच्छी तरह नहीं समझ सकते हैं।
प्रश्न 3. प्रांतों के लिए ज्यादा शक्तियों के पक्ष में क्या तर्क दिए गए?
उत्तर:
i. मद्रास के सदस्य के. सन्तनम ने कहा कि न केवल राज्यों को बल्कि केन्द्र को मजबूत बनाने के लिए भी शक्तियों का पुनर्वितरण आवश्यक है।
ii. उन्होंने बताया कि केन्द्र के पास जरूरत से ज्यादा उत्तरदायित्व होंगे तो वह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पायेगा। उसके कुछ दायित्वों में कमी करके उन्हें राज्यों को सौंप देने से केन्द्र ज्यादा मजबूत हो सकता है।
iii. सन्तनम ने केन्द्र को अधिक राजकोषीय अधिकार देने का भी विरोध किया। उनके अनुसार ऐसा करने से राज्यों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जायेगी और वे विकास कार्य नहीं कर सकेंगे। उन्होंने संघीय व्यवस्था को समाप्त करके एकल व्यवस्था को स्थापित करने की वकालत की।
iv. प्रांतों के अन्य अनेक सदस्य भी इसी प्रकार की आशंकाओं से परेशान थे। उनका कहना था कि समवर्ती सूची और केन्द्रीय सूची में कम से कम विषय रखे जाएँ एवं राज्यों को अधिक अधिकार दिए जाएँ।
प्रश्न 4. महात्मा गाँधी को ऐसा क्यों लगता था कि हिन्दुस्तानी राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए?
उत्तर: हिन्दुस्तानी राष्ट्रीय भाषा –
1. महात्मा गाँधी का मानना था कि हिंदुस्तानी भाषा में हिंदी के साथ-साथ उर्दू भी शामिल है और दो भाषाएँ मिलकर हिंदुस्तानी भाषा बनाती हैं।
2. वह हिंदू और मूसलमान दोनों के द्वारा प्रयोग में लाई जाती हैं और दोनों की संख्या अन्य सभी भाषा-भाषियों की तुलना में अधिक है। यह हिन्दू और मुसलमानों के साथ-साथ उत्तर और दक्षिण में भी खूब प्रयोग में लाई जा सकती है।
3. गाँधी जी यह जानते थे कि हिंदी और उर्दू में संस्कृत के साथ-साथ अरबी और फारसी के शब्द भी मध्यकाल से प्रयोग हो रहे हैं। जब ऐसा है तो हिन्दुस्तानी भाषा सभी लोगों के लिए समझने में सहज है।
4. गाँधी जी हिंदुस्तानी भाषा को देश के हिंदू और मुसलामनों में सद्भावना और प्रेम बढ़ाने वाली भाषा मानते थे। उनको कहना था कि इससे दोनों सम्प्रदायों के लोगों में परस्पर मेल-मिलाप, प्रेम, सद्भावना ज्ञान का आदान-प्रदान बढ़ेगा और यही भाषां देश की एकता को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
5. महात्मा गाँधी का कहना था जो लोग हिंदी को हिंदुओं की और उर्दू को केवल मुसलमानों की भाषा बनाकर भाषा के क्षेत्र में धार्मिकता और साम्प्रदायिकता का घृणित खेल खेलना चाहते हैं वे वस्तुतः संकीर्ण मनोवृत्ति के हैं।
प्रश्न 5. वे कौन-सी ऐतिहासिक ताकतें थीं जिन्होंने संविधान का स्वरूप तय किया?
उत्तर: संविधान का स्वरूप तय करने वाली ऐतिहासिक ताकतें निम्नलिखित हैं:
i. संविधान का स्वरूप तय करने वाली प्रथम ऐतिहासिक ताकत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी जिसने देश के संविधान को लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
ii. मुस्लिम लीग ने देश के विभाजन को बढ़ावा दिया परन्तु उदारवादी और विभाजन के बाद भी विभिन्न दबाव समूहों या राजनैतिक दलों से जुड़े रहने वाले मुसलमानों ने भी भारत को धर्म निरपेक्ष बनाए रखने तथा सभी नागरिकों की अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाये रखने में सक्षम सांविधिक प्रावधानों को समर्थन दिया।
iii. समाजवादी विचारधारा या वामपंथी विचारधारा वाले लोगों ने संविधान में समाजवादी ढाँचे की सरकार बनाने, भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने और समान काम के लिए समान वेतन, बंधुआ मजदूरी समाप्त करने, जमींदारी उन्मूलन करने के प्रावधानों को प्रविष्ट कराया।
iv. एन. जी. रांगा और जयपाल सिंह जैसे आदिवासी नेताओं ने संविधान का स्वरूप तय करते समय इस बात की ओर ध्यान देने के लिए जोर दिया कि संविधान में आदिवासियों की सुरक्षा तथा उन्हें आम आदमियों की दशा में लाने के प्रावधान प्रविष्ट किए जाएँ।
प्रश्न 6. दमित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर: दमित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावें:
i. अस्पृश्यों (अछूतों) की समस्या को केवल संरक्षण और बचाव से हल नहीं किया जा सकता बल्कि इसके लिए जाति भेदभाव वाले सामाजिक नियमों, कानूनों और नैतिक मान्यताओं को समाप्त करना जरूरी है।
ii. हरिजन संख्या की दृष्टि से अल्पसंख्यक नहीं हैं। आबादी में उनको हिस्सा 20-25 प्रतिशत है। उन्हें समाज और राजनीति में उचित स्थान नहीं मिला है और शिक्षा और शासन में उनकी पहुँच नहीं है।
iii. डा. अम्बेडकर ने संविधान का द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन करने, तालाबों, कुओं और मंदिरों के दरवाजे सभी के लिए खोले जाने और निम्न जाति के लोगों को विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिये जाने का समर्थन किया।
iv. मद्रास के नागप्पा ने दमित जाति के लोगों हेतु सरकारी नौकरियों और विधायिकाओं में आरक्षण का दावा किया।
v. मध्य प्रांत के दमित जातियों के एक प्रतिनिधि श्री के जे खाण्डेलकर ने दलित जातियों के लिए विशेष अधिकारों का दावा किया।
प्रश्न 7. संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थिति और एक मजबूत केन्द्र सरकार की जरूरत के बीच क्या संबंध देखा?
उत्तर:
i. प्रारम्भ में सन्तनम जैसे सदस्यों ने केन्द्र के साथ राज्यों को भी मजबूत करने की बात कही। अनेक शक्तियाँ केन्द्र को सौंप देने से वह निरंकुश हो जायेगा और ज्यादा उत्तरदायित्व ii. रहने के कारण वह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पायेगा।
ii. ड्राफ्ट कमेटी के चेयरमेन डॉ. बी. आर अम्बेडकर ने कहा कि वे एक शक्तिशाली और एकीकृत केन्द्र सरकार की स्थापना करना चाहते हैं।
iii. 1946 और 1947 में देश के विभिन्न भागों में सांप्रदायिक दंगे और हिंसा के दृश्य दिखाई दे रहे थे। इससे सामाजिक तनाव बढ़ रहा था और देश अनेक टुकड़ों में विभाजित हो रहा था। इसका संदर्भ देते हुए अनेक सदस्यों ने सुझाव दिया कि केन्द्र को अधिक अधिकार देकर उसे मजबूत बनाना चाहिए जिससे वह इन दंगों का दमन कर सके और साम्प्रदायिकता समाप्त कर सके।
iv. संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) के एक सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि शक्तिशाली रहने पर ही केन्द्र सरकार सम्पूर्ण देश के हित की योजना बना पाएगी और आर्थिक संसाधनों को जुटा पाएगी।
v. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश के विभाजन के पूर्व इस बात से सहमत थी कि प्रांतों को पर्याप्त स्वायत्तता दी जायेगी परन्तु लीग द्वारा विभाजन कराए जाने के पश्चात् कांग्रेस का विचार बदल गया क्योंकि यदि केन्द्र सरकार अधिक शक्तिशाली रहती तो लीग ऐसा नहीं कर सकती थी।
vi. औपनिवेशिक शासन व्यवस्था समाप्त होने के तुरंत बाद नेताओं ने यह महसूस किया कि केन्द्र ही अव्यवस्था पर अंकुश लगा सकता है और देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
प्रश्न 8. संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिए क्या रास्ता निकाला?
उत्तर: संविधान सभा द्वारा भाषा के विवाद को हल करने के लिए किये गए उपाय:
1. संविधान की भाषा के मुद्दे पर कई महीनों तक बहस होती रही और कई बार तनाव भी उत्पन्न हुआ। वस्तुत: यह देश अनेक भाषाओं और संस्कृतियों का देश था ऐसे में इसे भाषा की दृष्टि से सूत्रबद्ध करने की समस्या थी।
2. गांधी जी का मानना था कि हिंदी और उर्दू के मेल से बनी हिंदुस्तानी भारतीय जनता के एक बहुत बड़े भाग और यह विविध संस्कृतियों के आदान-प्रदान से समृद्ध हुई एक साझी भाषा है। वह हिन्दुओं और मुसलमानों को, उत्तर और दक्षिण के लोगों को एकजुट कर सकती है।
3. भाषा को लेकर भी संविधान सभा में गर्मागर्म बहस हुई। कोई स्पष्ट हल न निकलने की दशा में एक भाषा समिति बनाई गई तथा उसकी संस्तुति के अनुसार देवनागरी को राज्यभाषा का दर्जा देने की बात सभी सदस्यों ने स्वीकार की ली। राष्ट्रभाषा के रूप में उसके वर्चस्व को नकार दिया गया जबकि उत्तर भारत के लगभग सभी नेता इसको राष्ट्रभाषा को दर्जा दिलाने के लिए बहुत व्यग्र थे।
मानचित्र कार्य
प्रश्न 9. वर्तमान भारत के राजनीतिक मानचित्र पर यह दिखाइए कि प्रत्येक राज्य में कौन-कौन सी भाषाएँ बोली जाती हैं। इन राज्यों की राजभाषा को चिन्हित कीजिए। इस मानचित्र की तुलना 1950 के दशक के प्रारंभ के मानचित्र से कीजिए। दोनों मानचित्रों में आप क्या अंतर पाते हैं? क्या इन अंतरों से आपको भाषा और राज्यों के आयोजन के संबंधों के बारे में कुछ पता चलता है? वर्तमान भारतीय राज्यों में भाषाओं में परिवर्तन-1950 के पश्चात् कई राज्यों का पुनर्गठन हुआ और उनके भाषायी चरित्र में कुछ उल्लेखनीय परिवर्तन आए हैं –
उत्तर:
1. अरुणाचल: अरुणाचल के कई लोगों ने गत 60 वर्षों में प्रमुख भाषाओं के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी सीखी है ।
2. असम में: असमी के साथ हिंदी और अंग्रेजी का प्रभाव ज्यादा बढ़ा है। अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ कम हुई हैं।
3. आंध्र प्रेदश में तेलुगू भाषा अधिक प्रमुख हुई है। शहरों में हिंदी और अंग्रेजी भाषा का विकास हुआ है।
4. उड़ीसा में उड़िया के साथ-साथ आदिवासियों की स्थानीय भाषाएँ बोली जाती हैं। हिंदी, अंग्रेजी का प्रचार-प्रसार अधिक हुआ है।
5. उत्तर प्रदेश में हिंदी के साथ-साथ अवधी, ब्रजभाषा, भोजपुरी, उर्दू और अंग्रेजी का प्रचार-प्रसार है।
6. कर्नाटक में कन्नड़ के साथ-साथ दक्षिण भारत की तमिल, तेलुगू, हिंदी और अंग्रेजी भाषा शहरी क्षेत्रों में अधिक बढ़ी है।
7. केरल में मलयालम के साथ-साथ उर्दू, तमिल, कन्नड़, मलयालम और कुछ शहरों में हिंदी और अंग्रेजी का प्रचार-प्रसार बढ़ा है।
8. गुजरात में गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है और मराठी का कम हुआ है।
9. गोवा में पुर्तगाली भाषा का प्रभाव कम हुआ है, हिंदी और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
10. जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी, ढोंगरी, लद्दाखी के साथ-साथ उर्दू और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
11. तमिलनाडु में तमिल, कन्नड़, तेलुगू के साथ हिंदी, अंग्रेजी शहरों में बढ़ी है।
12. त्रिपुरा में अंग्रेजी, हिंदी का प्रभाव बढ़ा है और बंगला का प्रभाव कम हुआ है।
13. पंजाब में पंजाबी और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
14. पश्चिमी बंगाल में बंगला और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
15. बिहार में हिंदी, उर्दू, संथाली और भोजपुरी का प्रभाव बढ़ा है।
16. मणिपुर में मणिपुरी, थाडो, कंगकुल और शहरों में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
17. मध्य प्रदेश में हिंदी, गॉडी, भीली और शहरों में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
18. मिजोरम में लुशाई, बंगला और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
19. मेघालय में खासी, गारो और बंगला का प्रभाव कम हुआ है।
20. राजस्थान में हिंदी, भीली, उर्दू और शहरों में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
21. सिक्किम में नेपाली, भोटिया, हिंदी और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
22. हरियाणा में हिंदी, उर्दू और पंजाबी का प्रभाव कम हुआ है।
23. हिमाचल प्रदेश में हिंदी, किन्नौरी और पंजाबी का प्रभाव कम हुआ है।
24. छत्तीसगढ़ में भीली, गाँडी, और शहरों में हिंदी का प्रभाव बढ़ा है।
25. दिल्ली में हिंदी, पंजाबी, हरियाणवी का प्रभाव बढ़ा है।
Leave a Reply