Short Questions (with Answers)
1. ‘कबहुँक अंब अवसर पाई’ में ‘अंब’ का तात्पर्य किससे है?
उत्तर : माता सीता से।
2. तुलसीदास ने अपना परिचय किस रूप में दिया है?
उत्तर : राम के दास के रूप में।
3. ‘नाम लै भरै उदर’ का क्या अर्थ है?
उत्तर : भगवान का नाम लेकर जीवन-यापन करना।
4. तुलसीदास किससे सहायता माँगते हैं?
उत्तर : माता सीता से।
5. ‘कलि कराल दुकाल दारुन’ का क्या अर्थ है?
उत्तर : कलियुग का भयंकर और विकट समय।
6. ‘राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी’ – इसका कारण क्या है?
उत्तर : राम का करुणा और कृपा भाव।
7. द्वितीय पद में तुलसीदास ने किस काल का वर्णन किया है?
उत्तर : कलियुग।
8. ‘दीनता और दरिद्रता’ के प्रयोग का क्या उद्देश्य है?
उत्तर : अपनी स्थिति को स्पष्ट करना।
9. ‘कौर ही तें काजु’ में ‘कौर’ का क्या अर्थ है?
उत्तर : भोजन।
10. तुलसीदास किस वस्तु के लिए भूखे हैं?
उत्तर : भक्ति के लिए।
11. ‘रामकृपालु’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर : कृपा करने वाले राम।
12. ‘नीच जन, मन ऊँच’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर : आचरण में नीचता और अहंकार।
13. ‘पेट भरि तुलसिहि जेंवाइय’ का क्या अर्थ है?
उत्तर : तुलसीदास को पेट भर भोजन दीजिए।
14. ‘राम’ शब्द के उच्चारण से तुलसीदास कैसा अनुभव करते हैं?
उत्तर : रोमांचित हो जाते हैं।
15. ‘हहरि हिय में सदय’ का क्या अर्थ है?
उत्तर : हृदय में करुणा उत्पन्न होना।
16. दूसरे पद में तुलसी किसकी प्रशंसा करते हैं?
उत्तर : राम की।
17. तुलसी सीता से किस माध्यम से राम से निवेदन करना चाहते हैं?
उत्तर : दीनता के माध्यम से।
18. तुलसीदास ने अपनी स्थिति किस प्रकार वर्णित की है?
उत्तर : दरिद्र, दीन और पापी के रूप में।
19. ‘रामायण’ में तुलसीदास के अनुसार राम का स्वभाव कैसा है?
उत्तर : दयालु और सहायक।
20. ‘द्वार हौं भोर ही को आजु’ का भावार्थ क्या है?
उत्तर : सुबह से ही प्रभु के द्वार पर खड़ा हूँ।
Medium Questions (with Answers)
1. ‘कबहुँक अंब अवसर पाई’ में तुलसी ने सीता से किस प्रकार की सहायता माँगी है?
उत्तर : तुलसीदास ने सीता से प्रार्थना की है कि वे उनकी दीन अवस्था को राम तक पहुँचाएँ। वे अपने आपको दीन, अक्षम और पाप से भरपूर बताते हैं। तुलसी का मानना है कि सीता के माध्यम से राम तक उनका संदेश पहुँचेगा। यह सहायता उनकी भक्ति और जीवन में बदलाव लाने का माध्यम बनेगी।
2. ‘रामकृपालु’ सुनने पर तुलसी की बिगड़ी बात कैसे बन जाती है?
उत्तर : तुलसी को राम के दयालु और करुणामय स्वभाव पर अटूट विश्वास है। उनका मानना है कि राम का नाम लेने से उनकी सारी परेशानियाँ समाप्त हो जाएँगी। राम अपने भक्तों की हर समस्या को हल करने में समर्थ हैं। इस भरोसे के कारण तुलसी अपनी बिगड़ी बात बनने की उम्मीद रखते हैं।
3. दूसरे पद में तुलसी ने कलियुग का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर : तुलसी ने कलियुग को अराजकता और अधर्म से भरा युग बताया है। इस युग में लोग पापी हैं, अहंकारी हैं, और अपने कर्तव्यों से विमुख हैं। समाज में नैतिकता का पतन हो गया है, और हर जगह अंधकार है। ऐसे समय में केवल भगवान की कृपा ही मुक्ति का मार्ग दिखा सकती है।
4. ‘दीनता-दरिद्रता’ को तुलसी क्यों व्यक्त करते हैं?
उत्तर : तुलसीदास भगवान की कृपा पाने के लिए अपनी दीनता और दरिद्रता व्यक्त करते हैं। वे अपनी दयनीय स्थिति को राम और सीता के सामने रखते हैं ताकि वे उनकी सहायता करें। तुलसी की यह विनम्रता उनके भक्ति मार्ग का प्रतीक है। उनकी दृष्टि में दीनता ही भक्ति का सच्चा स्वरूप है।
5. तुलसी सीता से राम तक बात पहुँचाने की प्रार्थना क्यों करते हैं?
उत्तर : तुलसी मानते हैं कि सीता करुणामयी और सहायक हैं, जो राम से उनकी बात को प्रभावी ढंग से कह सकती हैं। वे स्वयं को छोटा और अक्षम समझते हैं और सीधे राम से बात करने का साहस नहीं कर पाते। तुलसी को विश्वास है कि राम सीता की बात सुनने पर तुरंत उनकी सहायता करेंगे। यह उनकी भक्ति की गहराई और श्रद्धा को दर्शाता है।
6. ‘नीच जन, मन ऊँच’ से तुलसी क्या व्यक्त करते हैं?
उत्तर : तुलसी कलियुग के समाज की दशा बताते हैं, जहाँ आचरण में नीचता है लेकिन मन में अहंकार है। लोग अपने कर्मों में सच्चाई और ईमानदारी खो चुके हैं। उनके अनुसार, यह स्थिति समाज के पतन और अराजकता का प्रतीक है। इस अहंकारी दृष्टिकोण के कारण समाज में असंतुलन फैला है।
7. ‘राम’ शब्द के उच्चारण से तुलसी को कैसा अनुभव होता है?
उत्तर : तुलसीदास ‘राम’ शब्द के उच्चारण मात्र से भावविभोर हो जाते हैं। उनका हृदय करुणा, प्रेम, और भक्ति से भर उठता है। इस अनुभव से वे भगवान राम के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण को और गहरा अनुभव करते हैं। यह उनकी भक्ति की तीव्रता और प्रेम को दर्शाता है।
8. ‘पेट भरि तुलसिहि जेंवाइय’ का क्या भावार्थ है?
उत्तर : तुलसी अपनी स्थिति को भूखे भिखारी के रूप में व्यक्त करते हैं। वे भगवान से निवेदन करते हैं कि उन्हें केवल भोजन नहीं, बल्कि भक्ति का अमृत भी प्रदान करें। इस वाक्य से उनकी आध्यात्मिक भूख का पता चलता है। उनकी भक्ति और विनम्रता स्पष्ट झलकती है।
9. तुलसी की भक्ति में सीता का क्या स्थान है?
उत्तर : तुलसी के लिए सीता करुणा और सहायता का प्रतीक हैं। वे सीता को अपनी समस्याओं को राम तक पहुँचाने का माध्यम मानते हैं। तुलसी की भक्ति में सीता का स्थान मार्गदर्शक और सहायक का है। उनकी भक्ति सीता के प्रति भी श्रद्धा और विश्वास का द्योतक है।
10. ‘कलि कराल दुकाल दारुन’ का समाज पर क्या प्रभाव है?
उत्तर : इस वाक्य में तुलसी कलियुग की कठोर सच्चाई का वर्णन करते हैं। इस युग में लोग अपने नैतिक और सामाजिक मूल्यों को भूल चुके हैं। समाज में केवल अराजकता, पाप, और दुःख का वास है। तुलसी इसे मानवीय पतन और अध्यात्म से दूर होने का परिणाम मानते हैं।
11. तुलसी सीता को ‘प्रभु-दासी’ क्यों कहते हैं?
उत्तर : तुलसीदास सीता को भगवान राम की पत्नी और उनकी सबसे प्रिय दासी मानते हैं। वे सीता को राम की करुणा और कृपा का माध्यम मानते हुए उन्हें ‘प्रभु-दासी’ कहते हैं। इस शब्द में तुलसी की गहरी श्रद्धा और समर्पण झलकती है। यह उनकी विनम्रता और भक्ति भावना को प्रकट करता है।
12. ‘हहरि हिय में सदय’ का अर्थ क्या है?
उत्तर : इस वाक्य से तुलसीदास करुणा की गहराई को व्यक्त करते हैं। वे चाहते हैं कि उनके कष्ट देखकर भगवान का हृदय दया से भर जाए। तुलसी का यह भाव उनके विश्वास और भक्ति की गहराई को दर्शाता है। इसे राम की कृपा प्राप्ति का मार्ग माना गया है।
13. तुलसीदास का राम से भरोसे का क्या कारण है?
उत्तर : तुलसीदास को विश्वास है कि राम करुणामय और कृपालु हैं, जो अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते। उन्होंने राम के स्वभाव को करुणा और दया का प्रतीक माना है। तुलसी का यह भरोसा उनकी भक्ति और भगवान पर अटूट श्रद्धा को दर्शाता है। उनके लिए राम हर समस्या का समाधान हैं।
14. ‘कलि कराल दुकाल दारुन’ में तुलसी ने किस स्थिति का वर्णन किया है?
उत्तर : इस पंक्ति में तुलसी ने कलियुग की भयानकता और अराजकता को चित्रित किया है। यह समय नैतिकता और धर्म के पतन का है, जहाँ लोग लोभ, मोह, और पाप में लिप्त हैं। समाज में हर तरफ अशांति और असंतोष का वातावरण है। तुलसी इसे ईश्वर की कृपा से सुधारने योग्य मानते हैं।
Long Questions (with Answers)
1. तुलसीदास ने ‘कबहुँक अंब अवसर पाई’ पद में अपनी स्थिति कैसे व्यक्त की है?
उत्तर : इस पद में तुलसीदास ने अपनी दीन-हीन स्थिति को प्रस्तुत किया है। वे खुद को निर्धन, अपूर्ण, और पापी मानते हैं। उनकी प्रार्थना सीता से है कि वे अपनी करुणा से उनकी दशा राम तक पहुँचाएँ। तुलसी ने स्वयं को राम का दास और केवल उनका नाम लेकर जीवन यापन करने वाला बताया है। उनकी दीनता और विनम्रता भक्ति का उच्चतम स्वरूप प्रकट करती है।
2. तुलसीदास ने कलियुग का वर्णन कैसे किया है, और इसे किस प्रकार पापमय बताया है?
उत्तर : तुलसीदास ने कलियुग को विकृत, अराजक और अधार्मिक समय के रूप में चित्रित किया है। इस युग में लोग अपनी आचरण की नीचता और मन के अहंकार में लिप्त हैं। समाज में धर्म, नैतिकता और मूल्यों का पतन हो चुका है। हर व्यक्ति अपने स्वार्थ और लोभ में अंधा हो गया है। ऐसे समय में केवल राम की कृपा ही मुक्ति का मार्ग दिखा सकती है।
3. ‘रामकृपालु’ का उच्चारण करते हुए तुलसी को कैसा अनुभव होता है?
उत्तर : तुलसीदास रामकृपालु शब्द सुनते ही अपनी बिगड़ी दशा के सुधरने का विश्वास प्रकट करते हैं। उनके लिए यह शब्द राम के दयालु स्वभाव और करुणा का प्रतीक है। राम का नाम लेने मात्र से तुलसी को अद्भुत आध्यात्मिक शांति मिलती है। यह अनुभव उनके अटूट विश्वास और भक्ति की गहराई को दर्शाता है। राम का नाम उनके लिए हर दुःख का समाधान है।
4. तुलसी ने सीता से राम के सामने अपनी बात क्यों रखवानी चाही है?
उत्तर : तुलसी सीता को करुणा और दया की देवी मानते हैं। वे सोचते हैं कि राम उनकी बात सीधे सुनने की अपेक्षा सीता के माध्यम से सुनेंगे तो अधिक प्रभावित होंगे। तुलसी अपनी दीन स्थिति में स्वयं राम से संवाद करने का साहस नहीं जुटा पाते। सीता उनकी आशा और भरोसे का केंद्र हैं। वे सीता के माध्यम से राम तक पहुँचने का प्रयास करते हैं।
5. ‘दीनता और दरिद्रता’ का तुलसी की भक्ति में क्या महत्व है?
उत्तर : तुलसीदास अपनी भक्ति में दीनता और दरिद्रता को प्रमुख स्थान देते हैं। उनका मानना है कि विनम्रता और भक्ति का मिलन ही भगवान की कृपा को आकर्षित कर सकता है। दीनता उनके आत्मसमर्पण का प्रतीक है। वे अपनी स्थिति को निम्नतम स्तर पर रखते हुए भगवान से अनुकंपा माँगते हैं। इस भाव में उनकी सच्ची भक्ति और आत्मनिवेदन झलकता है।
6. तुलसीदास के अनुसार कलियुग में समाज की स्थिति कैसी है?
उत्तर : तुलसीदास ने कलियुग को मानव जीवन के पतन का युग बताया है। इस समय में लोग स्वार्थ, लोभ और पाप में डूबे हुए हैं। समाज में हर जगह अराजकता, अधर्म, और असंतोष फैला हुआ है। नैतिकता और धर्म का पतन हो चुका है। ऐसे समय में तुलसीदास को केवल राम के नाम और उनकी कृपा पर ही भरोसा है।
7. तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में भाषा और छंद का उपयोग कैसे किया है?
उत्तर : तुलसीदास ने अवधी और ब्रजभाषा का उत्कृष्ट उपयोग किया है। उनकी काव्यभाषा में अन्य बोलियों और मुहावरों का भी सम्मिश्रण है। उन्होंने लोकगीतों और परंपरागत छंदों जैसे चौपाई, दोहा और सोरठा का प्रयोग कर अपनी रचनाओं को प्रभावी बनाया। उनकी शैली सरल और जनसाधारण को आकर्षित करने वाली है। यही कारण है कि उनकी रचनाएँ समाज के सभी वर्गों में लोकप्रिय हैं।
8. ‘रामचरितमानस’ और ‘विनय पत्रिका’ के तुलसी के जीवन और भक्ति पर क्या प्रभाव हैं?
उत्तर : ‘रामचरितमानस’ तुलसीदास की रामभक्ति की पराकाष्ठा है, जो राम के आदर्श जीवन और लोकजीवन का वर्णन करती है। ‘विनय पत्रिका’ उनके आत्मसमर्पण और विनम्रता का गहन परिचायक है। इन दोनों कृतियों ने उनके जीवन की भक्ति भावना को समाज में स्थायित्व दिया। तुलसी ने इन रचनाओं के माध्यम से जनसामान्य को भक्ति का सरल और व्यावहारिक मार्ग दिखाया। ये कृतियाँ उनकी आध्यात्मिक उपलब्धियों का प्रमाण हैं।
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