प्रश्न 1.
‘गालिब गैर नहीं हैं, अपनों से अपने हैं, के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहता है?’
उत्तर-
प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख कवि त्रिलोचन ने उर्दू के महान शायर ‘मिर्जा गालिब’ की गैर नहीं अपनों से अपने कहा है। कवि के अनुसार गालिब हिन्दी साहित्य के लेखकों से अलग नहीं है। गालिब अन्य हिन्दी कवि और साहित्यकारों के समान ही जीवन-दर्शन, सामाजिक दर्शन तथा प्रकृति के रहस्यों को जनहित में उद्घाटित करने का कार्य अपने शायरों के माध्यम से किया है। शायरी के हल्केपन से दूर गालिब और कथ्य का सारगर्भित चित्रण बड़े ही सहज, स्वाभाविक और ठेठपन में किया है जो कल्याणकारी और शिक्षाप्रद है। वस्तुत: गालिब ने जनहित में लेखक कार्य कर हिन्दी जनता के होताय कवि होने का गौरव प्राप्त कर लिया है।
प्रश्न 2.
‘नवीन आँखों में जो नवीन सपने हैं’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
प्रगतिशील काव्य धारा के कवि त्रिलोचन ने मिर्जा गालिब के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का चित्रण ‘गालिब’ शीर्षक सॉनेट में किया है। कवि के अनुसार आधुनिक भारत के नौनिहालों के सपने जिसमें एक स्वावलम्बी- स्वाभिमानी और शक्ति सम्पन्न भारत के उज्जवल भविष्य का जो सपना है वही सपना गालिब को भी थी। गालिब ने अपनी शायरी के माध्यम से जीवन के जटिल गाँठ को खोलकर भविष्य निर्माण के लिए आवश्यक क्रिया-कलापों के लिए सारगर्भित विवेचन प्रस्तुत किया है। नवीन भारत के नौनिहालों के नवीन सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने अक्षर की महिमा का दिग्दर्शन ही कराया है। अपनी भाषा और लक्ष्य में एकरूपता के कारण ही गालिब की बोली ही आज हमारी बोली बन गई है।
प्रश्न 3.
‘सुख की आँखों ने दुःख देखा और ठिठोली की’ में किन दुखों की ओर संकेत है?
उत्तर-
पतंत्रता की बेड़ी में जकड़ी भारत की सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन में व्याप्त दुखों का वर्णन गालिब की रचनाओं में उल्लेखित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के सुख को देखनेवाली आँखें, भारत की दारुण-दशा से व्यथित है। मिर्जा गालिब के ‘अंटी में दाम’ नहीं है वे साधारण जीवन व्यतीत करते हैं। अपने जीवन की कठिनाइयों भरे मार्ग से उतना दुःख नहीं है, वे तो जीवन का साधक कवि है जिसकी आँखों में एक सबल, सजग, सुशिक्षित, स्वावलम्बी तथा सर्वशक्तिसम्पन्न भारत का सपना है। उन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन के दुःखों से ठिठोली करने की आदत-सी पड़ गई है।
प्रश्न 4.
गालिब ने अक्षर से अक्षर की महिमा किस प्रकार जोड़ी?
उत्तर-
कविवर त्रिलोचन ने उर्दू के महान शायर मिर्जा गालिब के शायरों का भारतीय साहित्य, भारतीय जीवन तथा भारतीय दर्शन पर गहरा और व्यापक छाप को सहज ही परिलक्षित किया है। गालिब का व्यक्तित्व सहज, सादगीपूर्ण तथा शिक्षाप्रद था। उनकी रचनाओं में हिन्दी, उर्दू तथा फारसी का घालमेल है। गालिब ने जो कुछ लिखा है वह जीवन के सत्य के अत्यन्त करीब है। अन्य उर्दू शायरों की भाँति उनकी शायरी में फूहड़पन और हल्केपन का समावेश न होकर तथ्य और कथ्य पर आधारित है। उनकी रचनाओं में नैसर्गिक रूप से भारतीय परम्परा सहज ही दृष्टिगोचर होता है।
उनकी भाषा की सशक्ता सार एवं चित्रण दुनिया के लिए एक दुर्लभ उदाहरण है। शब्द से शब्द जोड़कर उसकी महिमा को व्यापक अर्थ में जनहित में उद्घाटित करनेवाले कवियों के श्रेणी में गालिब प्रतिष्ठित हैं। कवि के रूप में उन्होंने हिन्दी, उर्दू तथा फारसी शब्दों के समायोजन कर व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। महान उर्दू शायर गालिब के शब्द .का समुचित आधार बनाकर तथा शब्द से शब्द को जोड़कर तथ्य और कथ्य को सहजता से पाठक के सामने प्रस्तुत करने में महारत हासिल था।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
“अपना कहने को क्या था, धान-धान नहीं था,
सत्य बोलता था, जब-जब मुँह खोल रहे थे।”
उत्तर-
प्रस्तुत व्याख्येन पंक्तियाँ प्रगतिवाद काव्यधारा के प्रमुख कवि त्रिलोचन द्वारा विरचित ‘गालिब’ शीर्षक सॉनेट से ली गई है। इस कविता में कवि ने उर्दू के महान शायर मिर्जा गालिब के व्यक्त्वि एवं कृतित्व को निखारने-सँवारने तथा गहराई से अनुशीलन किया है। गालिब की जिन्दगी का चित्रण करते हुए कवि कहता है कि भले ही गालिब के पास धन-धान नहीं था, अपना कहने के लिए कुछ भी नहीं था; परन्तु उन्होंने अपनी सत्यनिष्ठा के संबल को कभी नहीं छोड़ा।
गालिब की शायरी सत्य और समयानुरूप थी, जहाँ से मानव-जीवन के तार सहज ही झंकृत होते हैं। उन्होंने जब भी मुँह खोला अर्थात् रचना की वह सत्य पर आधारित भारतीय जनजीवन का सारगर्भित तत्व थे। गालिब सरलता, सादगी तथा सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण वे हिन्दी साहित्य के करीब उनकी रचना पहुँच सकी और हिन्दी कवि ने उन्हें ‘अपनों से अपना’ कहा है।
प्रश्न 6.
इस रचना के आधार पर गालिब के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभर कर सामने आती है।
उत्तर-
प्रस्तुत सॉनेट ‘गालिब’ त्रिलोचन की गालिब के प्रति श्रद्धा और निष्ठा का दर्पण है। मिर्जा गालिब उर्दू के महान शायर थे जिन्होंने उर्दू शायरी के माध्यम से अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व का महान छाप भारतीय सभ्यता-संस्कृति पर छोड़ी। मिर्जा गालिब सरल, सहज एवं सादगी के प्रतिमूर्ति थे। धनहीन होने के बाबजूद गालिब ने सत्यनिष्ठा से कभी मुँह नहीं मोड़ा। गालिब ने अपनी रचनाओं को जनहित में उद्घाटित कर एक नवीन चेतना, नवीन आशा एवं नवीन ध्येय से जन-मानस को जोड़ने का प्रयास किया है।
उन्होंने अपनी गरीबी से ठिठोली करते हुए निराले अंदाज में जीवन-पथ पर संघर्षरत होकर भावी भविष्य के लिए नवीन सपने संजोने का कार्य किया था। उनकी रचनाओं में भारतीय अस्मिता, भारतीय संस्कृति तथा भारतीय समाज का स्पष्ट छाप सहज ही प्रतिबिंबित होता है। उन्होंने सत्य पर आधारित भारतीय जीवन-दर्शन को दर्शाया है। वे पुरोधा शायर के रूप में अक्षर से अक्षर की महिमा को जोड़ने का कार्य किया था।
उनकी शायरी में पकृति तथा मानव-जीवन-संघर्षों में जूझते भारतीय समाज के अद्भुत चित्र प्रतिबिम्बत है। जीवन को प्रतिकूल दशाओं में भी परम्परागत नैतिकता का मूल्यबोध के सहारे आगे बढ़ते रहने की कला का गालिब दुर्लभ और अद्वितीय उदाहरण थे। गालिब को भारतीय जनमानस अक्षर में अक्षर की महिमा जोड़ने वाला जीवन का साधक कवि के रूप में चिरस्मृत करता रहेगा।
प्रश्न 7.
‘गालिब होकर रहे’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-
प्रगतिशील काव्यधारा के पुरोधा कवि त्रिलोचन में ‘गालिब’ शीर्षक सॉनेट में उर्दू के महान शायर मिर्जा गालिब के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला है। मिर्जा गालिब युग-पुरुष थे, जिन्होंने समाज की कुरीतियों पर ठोकर मारे, परन्तु उनका सामाजिक जीवन कैसा था; इसका वर्णन त्रिलोचन ने यथार्थ रूप में किया है। सामाजिक अन्धविश्वास तथा जड़ता से दु:खी गालिब को स्वयं की दीनता नजर नहीं आई। गालिब ने आधुनिक जीवन के नवीन सपने देखे। गालिब ने जीवन की जटिल गाँठ को जनहित में उद्घाटित कर मानवता की अकूत सेवा की।
भारतीय संस्कृति जोड़ने वाले साधक कवि थे, जिन्होंने अपनी सत्यनिष्ठा पर आधारित रचनाओं से भारतीय मानस को उद्वेलित एवं झंकृत किया। अपनी सरलता, सादगी तथा भारतीय जीवन दर्शन के उद्घोषक कवि के रूप में गालिब हिन्दी जनता का जातीय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। गालिब ने हिन्दी और उर्दू के बीच महासेतु बनकर इनके बीच की दूरी को पाटने का सार्थक प्रयास किया है।
गालिब के करिश्माई व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रभावित कवि गालिब के समान अपने जीवन और चरित्र का निर्माण करने हेतु प्रेरित किया है ताकि महान उर्दू शायर के समान भारत का प्रत्येक नागरिक सत्य, निष्ठा और कर्तव्य-परायणता का मेरुदण्ड बन सके। इस प्रकार गालिब का सम्पूर्ण व्यक्तित्व शिक्षाप्रद और अनुकरणीय है।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
प्रस्तुत सॉनेट में त्रिलोचन ने कई मुहावरों का प्रयोग किया है। जैसे-अपनों से अपना, अंटी में दाम न होना आदि। पाठ के आधार पर ऐसे मुहावरों की सूची बनाएँ और उनका वाक्य में प्रयोग करें।
उत्तर-
कवि त्रिलोचन रचित ‘गालिब’ शीर्षक सॉनेट में निम्नलिखित मुहावरे आये हैं अपनों से अपने-तुमसे क्या छिपाना, तुम तो अपनों से अपने हो। गाँठ जटिल-भागने में नहीं बहादुरी जीवन की जटिल गाँठ खोलने में है। दाम नहीं अंटी में-रिलायंस कम्पनी तुम खरीदगे? अंटी में दाम भी है या नहीं?
साँस-साँस पर तोलना-किस शब्द का क्या प्रभाव होगा बोलने से पहले साँस-साँस पर तौल लेना चाहिए।
अपना कहने को क्या-अपना कहने को क्या, तुम मेरी छोड़ो अपनी जरूरत कहो। मुँह खोलना- कीमत मुँह खोलने की भी होती है। गालिब होकर रहे-जीवन से हार कर नहीं, जीवन को गालिब होकर आनंद उठाओ।
प्रश्न 2.
महिमा, गरिमा शब्दों की तरह ‘इमा’ प्रत्यय लगाकर आठ अन्य शब्द बनाएं।
उत्तर-
पूर्णिमा, अरुणिमा, कालिमा, लालिमा, रक्तिमा, गरिमा, लघिया, महिमा।
प्रश्न 3.
‘धन-धान’ में कौन-सा समास है?
उत्तर-
धन-धान में द्वन्द्व समास है।
प्रश्न 4.
‘सत्य बोलता था जब-जब मुंह खोल रहे थे’-इस वाक्य में कर्ता कौन है।
उत्तर-
इस वाक्य में कर्ता ‘सत्य’ है जो बोलने का कार्य कर रहा है।
प्रश्न 5.
‘बेशक’ में ‘बे’ उपसर्ग है। ‘बे’ उपसर्ग लगाकर सात शब्द बनाएँ।
उत्तर-
बेकार, बेलगाम, बेमरौवत, बेमजा, बेसहारा, बेलौस और बेसुरा।
प्रश्न 6.
‘अक्षर’ शब्द के प्रयोग में श्लेष अलंकार है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
एक ही शब्द के विभिन्न सन्दर्भो में जब अलग-अलग अर्थ (भले ही निरर्थक हो) मिलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है। यहाँ अक्षर का पहला अर्थ वर्ण, दूसरा अर्थ भाषा (वाणी) और तीसरा अर्थ सर्वशक्तिमान कालपुरुष, जन्म-जरामरण से रहित ईश्वर, ब्रह्म परमेश्वर और अल्लाह है।
प्रश्न 7.
त्रिलोचन की काव्य भाषा में एक सादगी और सरलता दिखलाई पड़ती है चौड़ी गहरी नदी जैसी बताई जाती है। इस सॉनेट की सादगी और सरलता को आधार बनाकर उनकी काव्य भाषा पर एक टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
त्रिलोचन प्रगतिवादी आन्दोलन के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। प्रगतिवाद की विशेषताओं में एक यह भी है कि सरल बोधगम्य शब्दों, बिम्बों के माध्यम से कवि अपनी बात रखता है किन्तु उसकी मारक क्षमता कहीं अधिक बढ़ी होती है। त्रिलोचन को प्रेमचंद, निराला और नागार्जुन जैसे वास्तविक संघर्षपूर्ण संसार मिला, जिसे देखने, जीने भोगने और उसमें कलात्मक सुधार करने का अवसर मिला।
संघर्षों से दो-दो हाथ करते रहने वालों की काव्य भाषा में सादगी और सरलता ही आयेगी। ‘गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-“छुद्र नदि भरि चलि तोराई” अर्थात् जिन नदियें का पेटी उथला होता है, वे ही अधिक उफनती है। सौभाग्य से त्रिलोचन का वस्तु संसार जितना विस्तृत है उतना ही अनुभव सम्पृक्त भी है।
वे सॉनेट भले लिखते हों किन्तु सॉनेट रूपी गागर में वे सागर भर देते हैं। वह भी अपने आस-पास के प्रचलित शब्दों से लोकोक्तियों और मुहावरों के भरोसे। क्योंकि उन्हें यह सत्य पता है कि मुहावरे और लोकोक्तियों के पीछे कितने कड़े कटु अनुभव, मानस वृत्तियों का कितना लम्बा इतिवृत्त संबली के रूप में खड़ा है।
गालिब शीर्षक सॉनेट में भी यही सादगी और सरलता दृष्टिगोचर होती है। बोली गाँठ, ठिठोली-बहलाया, दाम, अंटी, साँस-तोल धान जैसे शब्दों के बदले त्रिलोचन शब्द कोश में अर्थ ढूँढने पर बाध्य कर देने वाले शब्दों का भी प्रयोग कर सकते थे किन्तु तब, गालिब का व्यक्तित्व इतना सहज नहीं होता। वे भी केशव की तरह कठिन काव्य के “प्रेत” की तरह दीखते। कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने भी लिखा है-
“जैसा मैं कहता हूँ, वैसा तू लिख फिर भी मुझसे बड़ा तू दीख”
कवि का बड़प्पन इसी में है कि यह बारीक-से-बारीक बात जेहन में उतार दे बिना किसी ताम-झाम के। अलंकार यदि स्वाभाविक रूप से आ जाएँ तो ठोक वरना अतिरिक्त श्रम न करे। तुम मिल जाए तो ठीक। किन्तु तुक के लिए बेतुक अर्थहीन वर्ष.-विन्यास से बचे। हम समझते है कि आधुनिक होकर भी, उच्च शिक्षा प्राप्त करके भी त्रिलोचन आपादमस्तक सादगी की पूतिमूर्ति हैं और इसी के प्रक्षेप इनके सॉनेट हैं।
प्रश्न 8.
‘महिमा’ संज्ञा है या विशेषण? वाक्य में प्रयोग कर स्पष्ट करें।
उत्तर-
महिमा भाववाचक संज्ञा पद है, जिसका अर्थ है-बड़ाई, महातम, महात्म्य, गौरव आदि। उदाहरण-भगवान श्रीकृष्ण की महिमा अपरम्पार है। भगवान श्रीराम की महिमा जगजाहिर है।
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