Unbeatable Super Mom – Mary Kom
Summary in Marathi
“अजेय सुपर मॉम – मेरी कोम” हे प्रकरण भारताच्या थोर महिला बॉक्सर मेरी कोम यांच्या प्रेरणादायी जीवनावर आधारित आहे. मेरी कोम, ज्यांचे पूर्ण नाव चुंगनेइजांग मेरी कोम आहे, यांचा जन्म 24 नोव्हेंबर 1982 रोजी मणिपूरच्या खांगथेई गावात एका गरीब कुटुंबात झाला. त्यांचे आई-वडील शेतमजूर होते आणि मेरी लहानपणापासून शेतीच्या कामात मदत करायच्या. त्यांना लहानपणापासून खेळाची आवड होती, विशेषतः ॲथलेटिक्सची. 1998 मध्ये मणिपूरच्या डिंग्को सिंग यांनी आशियाई खेळांमध्ये सुवर्णपदक जिंकले, ज्यामुळे मेरी यांना बॉक्सिंगची प्रेरणा मिळाली. 2000 मध्ये त्यांनी मणिपूर राज्य महिला बॉक्सिंग स्पर्धा जिंकून आपल्या करिअरला सुरुवात केली. 2001 मध्ये वयाच्या 18व्या वर्षी त्यांनी आंतरराष्ट्रीय स्तरावर अमेरिकेत पहिली रौप्यपदक जिंकली. मेरी कोम यांनी सहा वेळा जागतिक बॉक्सिंग चॅम्पियनशिप जिंकली आणि 2012 च्या लंडन ऑलिम्पिकमध्ये 51 किलो वजनी गटात कांस्यपदक मिळवून त्या पहिल्या भारतीय महिला बॉक्सर ठरल्या. त्यांना ‘मॅग्निफिसेंट मेरी’ म्हणून ओळखले जाते. मेरी यांनी आपल्या मुलाखतीत सांगितले की, त्यांना ऑलिम्पिक पदकाचा खूप आनंद आहे, पण सुवर्णपदक न मिळाल्याबद्दल त्यांनी देशाची माफी मागितली. त्यांनी भारताला अधिक पदके मिळवण्यासाठी खेळाडूंना प्रायोजक आणि खेळाला पूर्णवेळ करिअर म्हणून स्वीकारण्याची गरज असल्याचे सांगितले. मेरी यांनी पौष्टिक आहार आणि कठोर प्रशिक्षणावर भर दिला. त्या एक उत्तम आई आणि कुशल गृहिणी देखील आहेत. त्यांना अर्जुन पुरस्कार, पद्मश्री, आणि राजीव गांधी खेल रत्न यांसारखे अनेक पुरस्कार मिळाले. मेरी कोम यांचे जीवन मेहनत, आत्मविश्वास आणि समर्पणाचे प्रतीक आहे, जे सर्वांसाठी प्रेरणादायी आहे.
Summary in English
The chapter “Unbeatable Super Mom – Mary Kom” celebrates the inspiring journey of Mary Kom, a legendary Indian female boxer. Born as Chungneijang Mary Kom on November 24, 1982, in Kangthei village, Manipur, she grew up in a poor family where her parents worked as tenant farmers. Despite humble beginnings, Mary helped with farm chores while pursuing her education and developing a passion for athletics. Inspired by Dingko Singh’s gold medal win at the 1998 Asian Games, Mary chose boxing as her career. She began her journey in 2000 by winning the Manipur State Women’s Boxing Championship and went on to compete internationally in 2001, earning a silver medal at the AIBA Women’s World Boxing Championship in the USA at just 18. Known as ‘Magnificent Mary,’ she became a six-time World Amateur Boxing Champion and the only woman to win a medal in all six world championships. In 2012, she made history as the first Indian woman boxer to qualify for and win a bronze medal in the 51 kg flyweight category at the London Olympics. In an interview, Mary expressed her joy at this achievement but apologized to the nation for not winning gold. She emphasized the need for more corporate sponsorship and for people to take up sports as a full-time career to win more Olympic medals. Mary also highlighted the importance of nutrition, explaining how she gained 3 kg for the Olympics by eating healthy food. A dedicated mother of twins, she balances her boxing career with family life and excels in household tasks like cooking. Honored with awards like the Arjuna Award, Padma Shri, and Rajiv Gandhi Khel Ratna, Mary Kom’s story is a powerful example of determination, confidence, and breaking stereotypes, inspiring young athletes worldwide.
Summary in Hindi
“अजेय सुपर मॉम – मेरी कोम” अध्याय भारत की प्रसिद्ध महिला मुक्केबाज मेरी कोम के प्रेरणादायक जीवन पर आधारित है। मेरी कोम, जिनका पूरा नाम चुंगनेइजांग मेरी कोम है, का जन्म 24 नवंबर 1982 को मणिपुर के खांगथेई गाँव में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता किरायेदार किसान थे और मेरी बचपन से ही खेती के काम में उनकी मदद करती थीं। उन्हें बचपन से ही खेलों, खासकर एथलेटिक्स में रुचि थी। 1998 में मणिपुर के डिंग्को सिंग ने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता, जिसने मेरी को मुक्केबाजी शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 2000 में मणिपुर राज्य महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप जीतकर अपने करियर की शुरुआत की। 2001 में, 18 साल की उम्र में, उन्होंने अमेरिका में AIBA महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में रजत पदक जीता। ‘मैग्निफिसेंट मेरी’ के नाम से मशहूर, उन्होंने छह बार विश्व एमेच्योर मुक्केबाजी चैंपियनशिप जीती और सभी छह विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली एकमात्र महिला बनीं। 2012 के लंदन ओलंपिक में, उन्होंने 51 किलो फ्लाईवेट वर्ग में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा, और वह पहली भारतीय महिला मुक्केबाज बनीं, जिन्होंने ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया। एक साक्षात्कार में, मेरी ने अपनी इस उपलब्धि पर खुशी जताई, लेकिन स्वर्ण पदक न जीत पाने के लिए देश से माफी मांगी। उन्होंने भारत को अधिक ओलंपिक पदक दिलाने के लिए कॉरपोरेट प्रायोजन और खेल को पूर्णकालिक करियर बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। मेरी ने पौष्टिक आहार और कठिन प्रशिक्षण पर ध्यान दिया, और ओलंपिक के लिए 3 किलो वजन बढ़ाने के लिए स्वस्थ भोजन खाया। वह अपने जुड़वां बच्चों की समर्पित माँ भी हैं और खाना पकाने जैसे घरेलू कामों में भी निपुण हैं। उन्हें अर्जुन पुरस्कार, पद्मश्री, और राजीव गांधी खेल रत्न जैसे कई पुरस्कार मिले हैं। मेरी कोम की कहानी मेहनत, आत्मविश्वास और रूढ़ियों को तोड़ने का प्रतीक है, जो युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है।
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