सरल आवर्त गति, विशेषताएं
आवर्त गति
जब कोई पिंड किसी निश्चित पथ पर अपनी गति को एक निश्चित समयांतराल में बार-बार दोहराता है तो पिंड की इस गति को आवर्त गति (periodic motion) कहते हैं।
आवर्त गति में प्रयोग होने वाले समय अंतराल को आवर्तकाल कहते हैं। अर्थात वह समय अंतराल जिसके बाद वस्तु की गति की पुनरावृत्ति होती है आवर्तकाल कहते हैं।
आवर्त गति उदाहरण
1. सूर्य की परिक्रमा करती हुई पृथ्वी की गति आवर्त गति है जिसका आवर्तकाल 1 वर्ष होता है।
2. घंटे में घूमती सूइयों की गति आवर्त गति है। सेकंड वाली सुई का आवर्तकाल 1 मिनट, मिनट वाली सुई का 1 घंटा तथा घंटे वाली सुई का आवर्तकाल 12 घंटे होता है।
3. पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करते चंद्रमा की गति आवर्त गति का उदाहरण है। जिसका आवरतकाल 27.3 दिन होता है।
सरल आवर्त गति
जब कोई पिंड साम्य स्थिति के इधर-उधर एक सरल रेखा में गति करता है तो पिंड की इस गति को सरल आवर्त गति (simple harmonic motion in Hindi) कहते हैं।
सरल आवर्त गति में पिंड पर लगने वाला प्रत्यानयन बल प्रत्येक स्थिति में पिंड के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है।
यदि पिंड पर लगने वाला प्रत्यानयन बल F तथा विस्थापन d हो तो
F ∝ d
F = −kd
जहां k एक नियतांक है जिसे बल नियतांक कहते हैं ऋणात्मक चिन्ह से पता चलता है कि बल की दिशा सदैव विस्थापन के विपरीत होती है।
एकसमान वृत्तीय गति के रूप में सरल आवर्त गति
जब कोई पिंड किसी वृत्त की परिधि पर एकसमान कोणीय वेग से गति करता है तो पिंड से वृत्त के व्यास पर खींचे गए लंब के पाद की गति को सरल आवर्त गति कहते हैं।
सरल आवर्त गति की विशेषताएं
1. पिंड की गति सीधी सरल रेखा में किसी स्थिर बिंदु के इधर-उधर होती है।
2. सरल आवर्त गति करते हुए पिंड का वेग अधिकतम होता है।
3. पिंड पर लगने वाला प्रत्यानयन बल विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है।
4. इन पर लगने वाले बल की दिशा सदैव स्थिर बिंदु की ओर होती है।
5. पिंड पर त्वरण शून्य होता है।
Leave a Reply